चिट्ठी
सुनि,हमर ऐय नान्ह पत्र के,
हमरो जिनगी आश केवल तोरे लेल।
तखनो माटिक सोंधी रस रसल स्पर्श हो,
अल्पना रंग कए उज्जर जीवन गान।
बैदेहीक हृदयमे गीतध्वनि,
स्वप्न जागु ओते पुष्पक कलिकाय।
अंजुरि भरू आइ, अंजोर होए अकास,
आर अश्रु तरे विकल सत्य,
महावीर पग धरे जाइछ बैदेही पवित्र जत्था।
शब्द झूर माटीक आत्मा स्वर,
ध्वनिकेँ कण ओठ बिश्वभरा स्पंदन।
प्रथमं इजोत संग हृदय भरि श्वास,
प्रकृति दाय सुर,सृष्टि पाय नुतन जीवन।
माटि! ओ माँ! तों अमर,
तोहर आंचर बन्हन सभ आशा।
तुहि पायौ पोर पोर इ बिश्व,
तुहि बत्ती, तुहि अन्तहीन।
जिनगी आस्था पंक्तिक,पंक्ति आम,
तोहरे रंग मिझे गहे।
हम तोर महिमा गुनब
हमर ऐछ नान्ह पत्र।
तुहि सत्य,
तुहि स्वप्न,
तुहि चिरंतन।
—-श्रीहर्ष—–