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6 Nov 2024 · 1 min read

नफ़रतों के जो शोले........,भड़कने लगे

नफ़रतों के जो शोले……..,भड़कने लगे
आशियाँ., फिर गरीबों.., के जलने लगे।

एक पल को मैं बुत सा.., बना रह गया
जब वो वादे से अपने….., मुकरने लगे।

जो हुए थे जवां…, ख़्वाब दिल में कभी
टूट कर मोतियों से…….., बिखरने लगे।

सांस थम सी गयीं…, आंख पथरा गयीं
कौन हो..? कह के हम पे बिगड़ने लगे।

ज़ुर्म क्या है मेरा……, तुम बता दो ज़रा
क्यूँ मेरी ओर पत्थर……., उछलने लगे।

है अजब इस जमाने का….., दस्तूर भी
ज़ख्म देकर के मरहम….., रगड़ने लगे।

ख़ुद को पत्थर हमेशा…, जो कहते रहे
सुनके ग़ज़लों को मेरी…, पिघलने लगे।

सुर्ख़ मौसम यकीनन…., बदल जायेगा
इन हवाओं के रुख अब., बदलने लगे।

इस “परिन्दे” ने समझा मसीहा जिन्हें
पंख देखो…, वही अब…, कुतरने लगे।

पंकज शर्मा “परिन्दा”

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