Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Aug 2024 · 4 min read

ऋतुराज ‘बसंत’

भारतवर्ष के प्रसिद्धी के अनेक कारण है जैसे- साहित्य, संस्कृति, संस्कार, भाषा आदि। भारत को ऋतुओं का देश भी कहा जाता है। भारत अनेकता में एकता का उदहारण प्रस्तुत करता है। वैसे तो हमारे देश में छः ऋतुएँ हैं लेकिन मुख्य रूप से चार का महत्व अधिक है- बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु और शरद ऋतु। वसंत (Spring Season) उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी, मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिन्दू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है। इन सभी ऋतुओं से देश की प्राकृतिक शोभा में चार चाँद लग जाती है। हमेशा ये ऋतुएँ बदल-बदल कर प्रकृति की श्रृगांर करती हुई इसकी शोभा को बढ़ाती रहती है। सभी ऋतुओं में बसंत ऋतु सबसे निराली है। बसंत ऋतु का स्थान ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इसे ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है। इस ऋतु के आते ही सर्दी कम होने लगता है, और मौसम सुहावना होने लगता है। पेड़ों में नए-नए पत्ते आने लगते हैं। पशु-पक्षियों, पेड़-पौधे, जन-मानस सभी में जोश, उमंग और उल्लास भर जाते हैं। आम की डालियों पर बैठी कोयल अपने मधुर संगीत से कानों में मिश्री घोलने लगती है। कवि और कलाकार इस ऋतु में अपनी नई-नई कविताएँ रचने लगते हैं। इस मौसम में सूर्य भगवान भी अधिक तीव्र नहीं होते हैं तथा दिन और रात लगभग समान होता है।

एक और मान्यता के अनुसार बसंत ऋतु के स्वागत के लिए माघ महीने के पांचवे दिन एक जश्न मनाया जाता है। जिसमें विष्णु भगवान और कामदेव की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं में बसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवि जयदेव ने बसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप और सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार मिलते ही प्रकृति झूम उठती है। इस ऋतु में वृक्ष नव पल्लव का पालना बिछाती है, खिले हुए नये फूल प्रकृति के सुन्दर वस्त्र के समान सुशोभित होते हैं और हल्के पवन का झोंका शरीर को कोमल सुखद झुला पर झुलाती है तथा कोयल अपने मधुर गीत सुनाकर मन को बहलाती है।

डारि द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के, सुमन झंगूला सौहै,
तन छवि भारी दै पवन झुलावै, केकी कीर बतरावै देव।

इस तरह से प्रकृति के सौंदर्य का सुखद आनन्द सिर्फ बसंत ऋतु में ही मिल पाता है।

भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है- “ऋतुओं में मैं बसंत हूँ”। भगवान विष्णु जी के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना किया था। ब्रह्मा जी ने समस्त तत्वों जैसे- हवा, पानी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और खास तौर पर मनुष्य योनी की रचना किया था लेकिन वे इस रचना से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि चारों तरफ मौन छाया हुआ था। तभी विष्णु जी से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपनी कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया। जलकण के गीरते ही पृथ्वी पर कम्पन के साथ माँ सरस्वती प्रकट हुईं। उनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वर मुद्रा एवं अन्य में पुस्तक आदि थे। ब्रह्मा जी ने सरस्वती देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही सरस्वती देवी ने वीणा का मधुरनाद आरम्भ किया वैसे ही संसार के समस्त प्राणियों और जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। जलधारा में कोलाहल और पवन में सरसराहट होने लगी। तभी ब्रह्म देव ने देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। उसी समय से बसंत पंचमी को माँ सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में पर्व मनाया जाता है।

पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण भगवान ने माँ सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन आपकी भी आराधना की जाएगी। तभी से उतर भारत के कई हिस्सों में बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा होने लगी। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में बसंत का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है।
बसंत ऋतु में कई पर्व आते है जैसे- बसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) महाशिवरात्रि, होली आदि। इस ऋतु में फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों के फूल सोना जैसे चमकने लगते हैं। गेहूं और जौ की बालियाँ खिलने लगती हैं और रंग-बिरंगी तितलियाँ फूलों पर मंडराने लगती हैं। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। हमेशा सुन्दर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में अपनी सोलह कलाओं के साथ खिल उठती है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत हमारी सृष्टि का यौवन है।
जय हिंद

Language: Hindi
1 Like · 81 Views

You may also like these posts

संकल्प
संकल्प
Shyam Sundar Subramanian
उसे दिल से लगा लूँ ये गवारा हो नहीं सकता
उसे दिल से लगा लूँ ये गवारा हो नहीं सकता
अंसार एटवी
*ऐसी हो दिवाली*
*ऐसी हो दिवाली*
Dushyant Kumar
बाढ़ की आपदा
बाढ़ की आपदा
अवध किशोर 'अवधू'
फूल तितली भंवरे जुगनू
फूल तितली भंवरे जुगनू
VINOD CHAUHAN
बहुत जरूरी है एक शीतल छाया
बहुत जरूरी है एक शीतल छाया
Pratibha Pandey
तुमसे जो मिले तो
तुमसे जो मिले तो
हिमांशु Kulshrestha
सत्य सत्य की खोज
सत्य सत्य की खोज
Rajesh Kumar Kaurav
नवरात्रि विशेष - असली पूजा
नवरात्रि विशेष - असली पूजा
Sudhir srivastava
आज कल कुछ इस तरह से चल रहा है,
आज कल कुछ इस तरह से चल रहा है,
kumar Deepak "Mani"
आ चलें हम भी, इनके हम साथ रहें
आ चलें हम भी, इनके हम साथ रहें
gurudeenverma198
प्रसन्नता
प्रसन्नता
Rambali Mishra
जलाकर राख कर दिया,
जलाकर राख कर दिया,
श्याम सांवरा
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
4472.*पूर्णिका*
4472.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mamta Rani
क़ुदरत : एक सीख
क़ुदरत : एक सीख
Ahtesham Ahmad
बैठे थे किसी की याद में
बैठे थे किसी की याद में
Sonit Parjapati
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
एक ऐसा मीत हो
एक ऐसा मीत हो
लक्ष्मी सिंह
World stroke day
World stroke day
Tushar Jagawat
जय अम्बे
जय अम्बे
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
सुख भी बाँटा है
सुख भी बाँटा है
Shweta Soni
जय हो बाबा साँई बाबा
जय हो बाबा साँई बाबा
Buddha Prakash
" सुबह की पहली किरण "
Rati Raj
आँखों में अँधियारा छाया...
आँखों में अँधियारा छाया...
डॉ.सीमा अग्रवाल
'ऐन-ए-हयात से बस एक ही बात मैंने सीखी है साकी,
'ऐन-ए-हयात से बस एक ही बात मैंने सीखी है साकी,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मलाल आते हैं
मलाल आते हैं
Dr fauzia Naseem shad
कहां हो आजकल नज़र नहीं आते,
कहां हो आजकल नज़र नहीं आते,
Jyoti Roshni
"आसरा"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...