कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
मैं धर्मपुत्र और मेरी गौ माँ
हमको लगता है बेवफाई से डर....
भावों को व्यक्त कर सकूं वो शब्द चुराना नही आता
23/216. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
राज छोड़ बनवास में आया था मेरे साथ में
ग़रीबी तो बचपन छीन लेती है
*कहां किसी को मुकम्मल जहां मिलता है*
उषा नवल प्रभात की,लाया है नव वर्ष।
चलो मौसम की बात करते हैं।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
"अपनी ही रचना को थोड़ी देर के लिए किसी दूसरे की मान कर पढ़िए ए
क्या अच्छा क्या है बुरा,सबको है पहचान।
परम् गति दियऽ माँ जगदम्बा