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2 Aug 2024 · 1 min read

***नयनों की मार से बचा दे जरा***

***नयनों की मार से बचा दे जरा***
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कुछ बूँदें प्रेम की गिरा दे जरा,
तन-मन की प्यास को बुझा दे जरा।

मय से हैँ जो भरे नयन नील से,
आ प्याले जाम के पिला दे जरा।

रोशन होगा जहां अगर तुम मिलो,
जीने की आस को जगा दे जरा।

आई है शाम शरबती दर – सदर,
दो ही पल प्यार के बिता दे जरा।

यूँ बदरी बरसती रहे रात – दिन,
घुट कर गलहार तो लगा दे जरा।

मनसीरत चेहरा दिखे दिलदार का,
नयनों की मार से बचा दे जरा।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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