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24 Jul 2024 · 1 min read

" बादल या नैना बरसे "

गीत

बरसी बून्द सहेजा करते ,
बादल या नैना बरसे ।।

अँधियारा जब जब गहराता ,
है प्रकाश धुंधलाया सा ।
कैद नज़र जब बाहर झाँके ,
मन थोड़ा घबराया सा ।
उम्मीदों की किरण जागती ,
भीगे पल हों कुछ तर से ।।

एकाकी जीवन के पल में ,
मन व्याकुल हो जाता है ।
बरसी बदली दे शीतलता ,
पवन जरा बहलाता है ।
खोल हथेली , पल समेटते ,
गुमे नहीं बस , इस डर से ।।

बून्द बून्द से घट भरता है ,
भर जाते नद सागर भी ।
बून्द बून्द बरसाते बादल ,
काली ताने चादर भी ।
इंद्रदेव ने धनुष तानकर ,
छोड़े हैं अनगिन शर से ।।

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

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