फर्क़ क्या पढ़ेगा अगर हम ही नहीं होगे तुमारी महफिल
बस इतनी सी अभिलाषा मेरी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
रिज़्क़ तू सबको दे मेरे मौला,
किसी भी चीज़ की ख़ातिर गँवा मत आज को देना
मैं गर्दिशे अय्याम देखता हूं।
चाय के प्याले के साथ - तुम्हारे आने के इंतज़ार का होता है सिलसिला शुरू
तेरे सांचे में ढलने लगी हूं।
आयेगा तो वही ,चाहे किडनी भी
बहुत समय हो गया, मैं कल आया,
हमें जीवन के प्रति सजग होना होगा, अपने चेतना को एक स्पष्ट दि
काश!
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)