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30 May 2024 · 1 min read

मन मयूर

मायूस क्यों है दिल मेरे, अब जाग तू,
बुझा ले निज अश्रु से यह आग तू।
सफलता चूमेगी, तेरी चरण रज,
जंग है यह जिंदगी, मत भाग तू।।

देख मरघट, जल रहे अगणित जने,
नृप, महाजन राख मुट्ठी भर बने।
सब धरा का धरा ही रह जायेगा,
क्यों भटकता मन मेरे वन-बाग तू।।

चल सतत, निष्कर्ष से हो बेखबर,
छोड़ फल सम्मान, अपयश ईश पर।
रहेगा तब ही सुखी निश्चित यहाँ,
क्षणिक सुख की लालसा को त्याग तू।।

कर्म करता चल सतत, निःस्वार्थ हो,
चेष्टा हो नित तनिक परमार्थ हो।
रहेगा जीवित सदा सबके दिलों में,
चला यदि संसार से बेदाग तू ।।

– नवीन जोशी ‘नवल’

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