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29 May 2024 · 1 min read

कहीं तीसी फुला गईल

कहीं तीसी फुला गईल,
कहीं मिसरी घुला गईल,
ई बसन्त आवत-आवत,
हियरा जुड़ा गईल !

लीचियो के डारी मोजर,
अमवो के गाछ साजल,
कोईली बिदेसी आके,
सब डार-पात नाचल ।

गेन्दा फुला गईल ह,
उड़हुल फुला गईल बा,
मह-मह करेला सगरो,
केतकी झुला गईल बा ।

मन आगु-पाछु डोले,
सब गाछ कोंढ़ीयाइल,
जैसे कि जोजनगंधा
देहिया छुआ गईल ।

सरसों के फूल पीयर,
मेहंदी के पात हरियर,
झूम-झूम के नाच उठल,
फागुन में ढाब-दीयर ।

चंदा केहु निहारे,
केहु बन गईल चकोरी,
मनही में मुस्काली,
नेहिया के बन नटोरी ।

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