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24 May 2024 · 1 min read

विनती

विनती

मानव अंग, अनंग प्रभावी,
कलियुग में चहुँ ओर विकारी।
कहाँ छिपे हो, हे अविकारी !
हम पर पड़ी विपदा भारी ।

रसातलोन्मुख जीवनशैली हमारी,
भौतिक वाद के समक्ष मानवता हारी।
समस्त प्राणि हो रहे स्वेच्छाचारी,
कर्मक्षय से अधोगति होती जा रही।

जिन सद्‌गुणों से बने सुसंस्कारी,
उनका अभिधान करो, त्रिपुरारी !
सद्‌गुरु की कृपादृष्टि से सारी,
कामनाओं का शमन होगा हमारी।

-डॉ० उपासना पाण्डेय

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