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4 May 2024 · 1 min read

लो फिर गर्मी लौट आई है

लो फिर गर्मी लौट आई है
मन में वो यादें घिर आई हैं–लो फिर

हर घर में मटकों का पानी
दलिया रबड़ी सबको खानी
बड़े बुजुर्गो की बात सयानी
आज फ्रिज की ठण्डाई है– लो फिर

दोपहरी में वो पेड़ों की छाया
शिकंजी करती ठण्डी काया
मिट्टी के घरों तक थी माया
अब बंगलों में एसी भाई है–लोग फिर

बचपन खेले आंख मिचौली
कोयलिया बोले मिठी बोली
चौपालों में थी हंसी ठिठोली
आज दिलों में बस तन्हाई है–लो फिर

नदी-तालाबों में होता नहाना
पीतल मिट्टी के बर्तन में खाना
सांझ सवेरे वो सैर को जाना
‘V9द’ ये आंखें छलकाई है–लो फिर

स्वरचित
V9द चौहान

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