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29 Apr 2024 · 1 min read

मन में

भूल गया संवेदना, स्वार्थ भरा व्यवहार ।
तर्क शील मानव हुआ, अपने तक परिवार।।

पति पत्नी संतान हित,जिते कुछ इंसान।
सिमट गई संवेदना,हृदय बसा अभिमान।।

मान प्रतिष्ठा के लिए,करता खोटे काम।
धोखे अरु पाखंड से , मानव अब बदनाम।।

देख दुखी नजदीक में, मानव करे विचार।
अधिक अधिकतम और हो,बिके सभी घर द्वार ।।

बना हितैषी चाहता, लाभ उठाता रोज।
झूठ दिखा संवेदना,ठग जैसी मन खोज ।।

राजेश कौरव सुमित्र

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