वेदना की संवेदना
सुर विहीन कविता, तरंग रहित सरिता
किस पथ पर हो गए अग्रसर हम I
रक्त रंजित,कष्ट संचित वेदना
दर्द चीत्कारे चीखे , लुप्त पर संवेदना II
रूप नग्न, खुद ‘खुदी’ में मग्न
किस अरण्य में विलुप्त मन !
नीतिनिपुण धनहीन,जुल्मों पे खेद ना
दर्द चीत्कारे चीखे , लुप्त पर संवेदना II
बादल के आगोश में पलती है आशा किरण
आदमियों के दरमिया इंसान रूपी हिरण I
अंधकार की कालिमा को एकजुट हो भेदना
वेदना के उर से फिर उपजेगी संवेदना II