कुदरत तेरा करतब देखा, एक बीज में बरगद देखा।
सारी रात मैं किसी के अजब ख़यालों में गुम था,
घेरे मे संदेह के, रहता सत्य रमेश
दीवारों की चुप्पी में राज हैं दर्द है
गहरे ध्यान में चले गए हैं,पूछताछ से बचकर।
मैं हैरतभरी नजरों से उनको देखती हूँ
हम–तुम एक नदी के दो तट हो गए– गीत
- कोई परिचित सा अपरिचित हुआ -
#शिवाजी_के_अल्फाज़
Abhishek Shrivastava "Shivaji"
परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)