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17 Feb 2024 · 1 min read

बसंत हो

फूल को यदि उड़ना आता
तो नि:संदेह उड़कर जाता
और खोज लाता रूठी तितली को
जो अब तक नहीं आई,
और बसंत उसकी राह तककर
चला भी गया.

ख़त को यदि पता मालूम होता तो
नि:संदेह पहुँच जाता उस चौखट पर
जिसके लिए लिखा गया था
लेकिन डाकिया पता बताने वाले की
राह तककर चला भी गया.

हमें ज़रा भी समझ होती तो
नि:संदेह पढ़ लेते तुम्हारी आँखें
कि जिसमें सिर्फ़ मेरी इबारत लिखी थी
लेकिन हम निपट अनपढ़
और प्रेम हमारे इकरार की राह तककर
चला भी गया.

जीवन में ठहरे हर पतझड़ का
बस अंत हो,
बसंत हो….

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