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9 Feb 2024 · 1 min read

पूस की रात

पूस की रात और
कड़कती सर्दी
शमशीर समीर की
खेत के बीच की
अलाव चीरती
हाड़ तक सिहराती है

उम्मीद की गर्मी का ये कम्बल
और कुरेद आग अलाव की
सुनहरी भोर की बाट जोहती आँखें
पूरे चाँद के जादू में ये
कुछ ऐसा ही खो जातीं हैं

खिली खिली अनाज की बाली
चाँदी जैसी भातीं हैं ,
खलिहान चाँदी, फसल भी चाँदी
चाँदी ये पगडंडियाँ भी
भोर को जब जागेगा सूरज
धूप सुनहरी फैला देगा
खलिहान सोना हो जायेगा
काट फसल – रख कुठार में
बिछा के खटिया तब सो लूँगा

आज भी पूस की सर्दी
अलाव खेत का, सिहराती समीर,
चिटकती चिंगारी, फैला धुआँ
मेरे सपनों में आतीं है
सहसा मेरे खेत की ख़ुश्बू
मेरे कमरे को भर जाती है

Language: Hindi
167 Views
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