Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
2 Feb 2024 · 1 min read

ये अमलतास खुद में कुछ ख़ास!

सुन, अमलतास है खुद में खास
विरह के ताप का,इसे अहसास।
यह चमक लिए तपे कुंदन सी
नहीं खुद की कीमत का आभास।

श्वास का सिंचन,
यह जीवन मंचन,
होना मत बिल्कुल हताश।
सीखो इनसे,भरी धूप में भी,
लटक रहे,पीले अमलतास।
लटके बन गजरे पीले पीले
पीया मिलन की ज्यूं हो आस।
धरती तपती लोहे जैसी,
है जब खिलते अमलतास।

सदियों से करते तप,उल्टे लटक
कितना बड़ा होने का इतिहास।
शाखा पर पत्ते रंग बदल हुए पीले
गंवा देते टहनी पर सांस-सांस।
पर अमलतास तपता भरी दुपहरी
कुंदन बनने की ज्यूं हो आस।
धरती तपती लोहे जैसी,
है जब खिलते अमलतास।

स्वर्णिम मोती से जाते टूट-बिखर
सजते वसुधा को शोभित कर।
पीली पगड़ी, पीली चुनर,
पीले सोने से सजे हरित शजर(वृक्ष, दरख़्त)
जलते रहते करते बर्दाश
सुन पिया मिलन की ज्यूं हो आस।
धरती तपती लोहे जैसी,
है जब खिलते अमलतास।

जाने बखूबी है जीवन दूभर
इंतजार में गये मधुमास गुजर।
देकर नव कोंपल नव जीवन
छूते पीतांबर नूतन शिखर।
नीलम नैनों की प्रीति भाष
प्रियतम से मिलन की ज्यूं हो आस।
धरती तपती लोहे जैसी,
है जब खिलते अमलतास।

नीलम शर्मा ✍️

Loading...