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2 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल /

सवालों के हृदय टूटे हुए हैं ।
जवाबों के जिगर रूठे हुए हैं ।

बहुत फेंके है पत्थर ये ज़माना,
मगर फल डाल पर अटके हुए हैं ।

बहारे गुल से गायब है महक भी,
खिजाँ के पात भी सहमे हुए हैं ।

हुकूमत ने दिए जो दर्द अब तक,
दर-ओ-दीवार पर उभरे हुए हैं ।
००००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी

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