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1 Feb 2024 · 1 min read

मजदूर

नयनों से अश्रु बहते हैं,
दिल में तूफान मचलता है,,
हाथ बड़े मजबूत हमारे,
लेकिन दिल बहुत पिघलता है।
हम महलों के सुल्तान नहीं,
झोपड़ी के अपने राजा हैं,,
गौर से देखो दुनिया वालों,
हम भी एक विधाता हैं।।

काश की बचपन से मुझमें,
थोड़ी सी ही बेईमानी आती,,
यकीन मानो दुनिया वालों,
दौलत चलकर खुद पास में आती।
ये सच्चाई और अच्छाई का,
अगर बोलबाला ना होता,,
तो बंधु तुम विश्वास करो,
मैं भी एक दौलत वाला होता।

तुम राजा हो,बने रहो,
मैं रंग-फकीर ही अच्छा हूं,,
खाली है थैली मेरी,
पर मैं दिल का सच्चा हूं।
महलों के प्रताप शिखर में,
बिस्तर मखमल के होते होंगे,,
लेकिन आंखों में नींद ना होगी,
होंगे गैर बहुत पर,अपने ना होंगे।
करता रहता हूं दिन भर मजदूरी,
असार उदर सो जाता हूं,,
आंखों में नींद लाने को,
मैं कभी ना औषधि खाता हूं।

गौर से देखो दुनिया वालों,
मैं भी एक विधाता हूं।।
गौर से देखो दुनिया वालों।
मैं भी एक विधाता हूं।।

~विवेक शाश्वत

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