कहने को तो बहुत लोग होते है
सुप्त तरुण निज मातृभूमि को हीन बनाकर के विभेद दें।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
जुड़ी हुई छतों का जमाना था,
*दो तरह के कुत्ते (हास्य-व्यंग्य)*
स्वप्न और वास्तव: आदतों, अनुशासन और मानसिकता का खेल
कौन है सच्चा और कौन है झूठा,
- अब सबकुछ धुधला - धुधला लगता है -
बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
अब तो तमन्ना है कि, टूटे कांच सा बिखर जाऊं।
हमें एकांत में आना होगा यदि हमें सत्य से पूर्ण परिचित होना ह
कविता - "करवा चौथ का उपहार"
क्या खूब वो दिन और रातें थी,