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26 Jan 2024 · 1 min read

'मर्यादा'

कर कर्म हो मर्यादित,
मर्यादा भंग ना कीजे।
देश-धर्म रहे उन्नत,
यत्न सभी ये कर लीजे।।१

रखें प्रथम देश हित,
काज तब दूजा कीजे।
बन मातृभूमि रक्षक,
तन-मन अर्पित कर दीजे।।२

परम पिता जगदीश,
ध्यान उसका कर लीजे।
प्रात:स्मरण कर नाम,
अभिभावक पद छू लीजे।।३

करो कभी नव काज,
अनुमति श्रेष्ठ की लीजे।
कटुक वचन दो त्याग,
बोल में मधु भर दीजे।।४

आए अतिथि जब द्वार,
प्रसन्न हो स्वागत कीजे।
रख मधुर मुस्कान मुख,
आदर हृदय से कीजे।।५

तीखे सुन गुरु वचन,
कभीअपमान न कीजे।
स्व हित भाव खोल दृग,
हृदय पत्र पर लिख लीजे।।६

कर साधन दुखित हित,
हो कृत भाव यज्ञ कीजे।
रहे सम दृष्टि भुव पर,
बंधुत्व स्व उर भर दीजे।।७

मन मगन रहे ईश,
धन-वैभव-दर्प न कीजे।
हो पाप अज्ञान वश,
क्षमा-दान न विस्मृत कीजे।।८

मर्यादा पालक प्रभु,
चरित को पढ़ सुन लीजे।
शील नम्रता युक्त मुख,
निरख हृदय प्रफुल्ल कीजे।।९

मौलिक/स्वरचित
गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार(उत्तराखंड)

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