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9 Jan 2024 · 1 min read

*” कोहरा”*

” कोहरा”
सफेद चादर ओढ़े कोहरा आसमान में छाए।
लुका छिपी बादलों संग सूरज भी शरमाये।

धुंधली सी धुंध कोहरे में लिपटी हुई ,
सर्द हवाओं ने ठिठुरन सी दे गई।

भोर भई जब कलियाँ खिलती,भंवरा गुनगुनाये।
सूरज की किरणें छटा बिखेरे मंद मंद मुस्काये।

लहराती बल खाती, मदमस्त फिजा हवायें।
रंग बिरंगी तितलियाँ पँख फैला उड़ती जाये।

मौसम बदला रुत ,सुहानी अंगड़ाई ली है।
धरा ने सफेद चादर ओढ़े रुसवाई ली है।

अलसाई सी सुबह ठिठुरती ,शीत लहर चली।
कोहरा छंटते ही सूरज प्रगट हो गुनगुनी धूप निकली।

कोहरा धुंध घुप्प अंधियारा, चारों ओर कुछ नजर न आये।
ओस की बूंदें पत्तियों पे ,बिखरे मोती सा चमकती जाये।

शशिकला व्यास✍️

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