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20 Dec 2023 · 1 min read

मेरा दुश्मन

आईना मुझे हर बार माँज देता हैं,
क्योंकि मैंने दोस्त कम दुश्मन ज्यादा बनाए हैं,
गुलों को दूर रखता हूँ मैं अपने सीने से,
क्योंकि काँटे मैंने अपने बिस्तर में सजाए हैं,

कोई गाली दे मुझे पीठ पीछे से,
बेहतर है मैं खुद को आगे से जान लेता हूँ,
दोस्त मुझे रंगीन फूल देते है,
दुश्मनों से मैं अपनी हकीकत पहचान लेता हूँ,

आईने के सामने खुद को सजाकर के,
मैं हर बार अपनी मूर्ति बनाता हूँ,
मेरा दिलनशी दुश्मन मूर्ति तोड़ देता है,
और मैं हर बार नए पत्थर से नई मूर्ति बनाता हूँ..।।

prAstya… (प्रशांत सोलंकी)

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