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29 Nov 2023 · 1 min read

#कबित्त


● मेरी मातृभाषा पंजाबी और राष्ट्रभाषा हिन्दी है ; मैं दोनों भाषाओं में लिखता हूँ । प्रस्तुत रचना पंजाबी भाषा में है । ●

★ #कबित्त ★

ठीया नहीं वणज वपार दा
दिल घर है मेरे यार दा
मरज़ी दा मालक है यार मेरा
मालक सारे संसार दा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

वाढी मगरों लग्गियां ने इक्को जेहियां ढेरियां
चीचो-चीच गंढेरियां
दो तेरियां दो मेरियां
एक्का दूजा रूप है सच्ची सरकार दा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

कौण लगावे कौण बुझावे
कौण विगाड़े कौण बणावे
ओधरों कड्ढे एधर पावे
एह कंम है सब करतार दा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

वड्डयां दी विच उडीकां रहिए जी
जी आयां नूं कहिए जी
ढुक गोडे नाल बहिए जी
चरनां दी सेवा सुख मंनिए संसार दा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

मेरा होवे जां तेरा होवे
अगला हर दिन सुनहरा होवे
दिलां ते न कोई पहरा होवे
तेरा-मेरा दिल एहो पुकारदा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

पक्खे दी गोली है पौण
खून दे रिश्ते वड्ढे कौण
अक्खां चों सुरमा कड्ढे कौण
अक्खीं डिट्ठी मक्खी नहीं कोई डकारदा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

कविता छड्ड मैं कहे कबित्त
झूठे न होवण किसे दे मित्त
अखीर होसी सच दी जित्त
विच चुराहे फुट जाऊ भांडा झूठे परचार दा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . .

‘वेद’ विचारे नूं वडयाये कौण
डिग्गे नूं भुंजयों चाये कौण
रोंदे नूं चुप कराए कौण
कौण जो सांभे मौका बनण सरदार दा

ठीया नहीं वणज वपार दा . . . . . ।

#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२

Language: Punjabi
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