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14 Oct 2023 · 6 min read

काव्य_दोष_(जिनको_दोहा_छंद_में_प्रमुखता_से_दूर_रखने_ का_ प्रयास_करना_चाहिए)*

काव्य_दोष_(जिनको_दोहा_छंद_में_प्रमुखता_से_दूर_रखने_ का_ प्रयास_करना_चाहिए)

पटल पर अभी तक जो मित्र , दोहा सृजन में ,
1- मात्रा भार , 2-समकल -विषमकल ( कलन ) ,
3- विषम चरण में तेरह की यति (रगण -नगण ) 4- पदांत गाल

समझ चुके है , वह उपरोक्त आलेख को ध्यान में रखकर दोहा सृजन और अधिक परिपक्व कर सकते हैं |
आशा है यह आलेख आपके लिए उपयोगी होगा |आप आलेख को सम्हालकर रख सकते है

आलेख – सुभाष सिंघई ( एम० ए० हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र )
जतारा ( टीकमगढ़) म० प्र०

काव्य के वे तत्व जो रस के स्वाद में बाधा उत्पन्न करें अथवा रस का अपकर्ष करें उसे ‘काव्य दोष’ कहते हैं।
कई आचार्यो ने काव्य दोषों की ओर संकेत किया है , और कई दोषों के भेद वर्गीकृत किए हैं।
दोषों का विभाजन करना दुष्कर है , काव्यप्रकाश में 70 दोष बताए गये है इन्हें पांच श्रेणियों में विद्वान मानते है – १-पद दोष २- पदांश दोष ३- वाक्य दोष. ४- अर्थ दोष ५- रस दोष

उनमें से कुछ प्रमुख दोष (दोहा के सृजन उपयोगी) मैं सोदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ :-

1- श्रुति कटुत्व दोष (शब्द दोष )

जब काव्य के सृजन में कठोर लगने वाले शब्द प्रयोग होते हैं। जो सुनने में अच्छे नहीं लगते हैं, उसे “श्रुति कटुत्व ” दोष कहते हैं। जैसे-

उदाहरण👇

उत्तेजक हो जब सृजन , कथन सभी गूढ़ार्थ |
अन्वेषण हो अनवरत ,क्या “सुभाष” भावार्थ ||

(यह 🖕दोहा “श्रुति कटुत्व दोष” में माना जाएगा )

यदि इसको पांडित्य प्रदर्शन की अपेक्षा सरलीकरण से लिखें तब लिखा जा सकता है 👇जो सदैव जन साधारण में प्रचलित रहेगा |

मत विचार ऐसे लिखें , समझ न आए अर्थ |
कठिन शब्द करते सदा , भाव आपके व्यर्थ ||
`~~~~~~~~~~~~~~~~~

2 -च्युत संस्कृति दोष (शब्द दोष)

काव्य में जहाँ व्याकरण विरोधी शब्दों का प्रयोग होता है उसे
” च्युत् संस्कृति ” काव्य दोष कहते हैं।

उदाहरण~👇

बागों की लावण्यता , दे सुंदर परिवेश |
मन मयूर भी नाचता, शीतल रहे हृदेश ||

🖕”बागों की लावण्यता”के स्थान पर , “बागों का लावण्य भी ”
होना चाहिए ‘लावण्यता’ व्याकरणिक दोष है।

सही है 👇

बागों का लावण्य भी , दे सुंदर परिवेश |
मन मयूर भी नाचता , शीतल रहे हृदेश ||

‘अरे अमरता के चमकीले पुतलो ‘तेरे’ वे जयनाद’
(जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी की पंक्तियाँ)

इस उदाहरण में ‘तेरे’ के जगह ‘तुम्हारे’ आना चाहिए था |
यहाँ विद्वान समीक्षकों ने व्याकरणिक दोष कहा है।
~~~~~~~~~~~~~~~~

3- ग्राम्यत्व काव्य दोष (शब्द दोष)

जब खड़ी हिंदी के काव्यों में कवि अपनी काव्य भाषा में देशज या ग्रामीण शब्दों का प्रयोग करे वहाँ “ग्राम्यत्व काव्य दोष ” होता है।

जब ‘सुभाष’ दर्शन करे , जोड़ें दोनों हाथ |
मुड़ी धरे माँ के चरण , माँगें उनसे साथ ||

(यहाँ 🖕मुड़ी की जगह शीष शब्द का प्रयोग करना चाहिए , हिंदी में रचित काव्य में “मुड़ी ” “ग्रामत्व शब्द दोष” है

~~~~~~~~~~~~~

4- अश्लीलत्व काव्य दोष (शब्द दोष)

काव्य में जहाँ अश्लील, लज्जा, घृणा आदि सूचक शब्दों का प्रयोग होता है। वहाँ “अश्लीलत्व काव्य दोष” होता है।

उदाहरण
लगा चाटने थूककर , आकर वह नादान |
अब “सुभाष” मैं क्या कहूँ , बात हुई अवसान ||

🖕‘थूककर चाटना’ लज्जा जनक शब्द है। अतः यहाँ “अश्लीलत्व काव्य दोष” है।

इसको इस तरह भी लिखा जा सकता है 👇

बदल गया कहकर कथन , आकर वह नादान |
अब “सुभाष” मैं क्या कहूँ , बात हुई अवसान ||

दूसरा उदाहरण –

जलवा दिखा जवानियाँ , रहीं नदी में तैर |
अब “सुभाष” तुम चुप रहो , पीछे मोड़ो पैर ||

इस दोहे का🖕 पहला चरण ’ लज्जा जनक ‘ है। अतः यहाँ “अश्लीलत्व काव्य दोष” है

इसको इस तरह लिखा जा सकता है 👇

नहा रहीं हैं युवतियाँ , यहाँ नदी में तैर |
अब “सुभाष” तुम चुप रहो , पीछे मोड़ो पैर ||
~~~~~~~~~~

5- क्लिष्टत्व काव्य दोष ( शब्द दोष )

जहाँ काव्य में ऐसे दुरूह शब्दों का प्रयोग किया जाए। जिनका अर्थ बोध होने में कठिनाई हो उसे “क्लिष्टत्व काव्य दोष ‘ कहते है।

उदहारण
दृश्यम सब वीभत्स हैं , महाकाल का ‌जाल |
भूत मंडलम् है यहाँ , हिमगिरि उन्नत भाल ||

(यह 🖕”क्लिष्ठ काव्य दोष ” है , इसका सरलीकरण निम्न है 👇

दृश्य यहाँ कुछ है अजब , शिखर हिमालय देख |
महाकाल की मंडली , खींच रही कुछ रेख ||
~~~~~~~~~~~~~

6- न्यून पदत्व काव्य दोष (शब्द दोष)

जिस काव्य रचना में किसी ‘शब्द’ या ‘पद’ की कमी रह जाए वहाँ “न्यून पदत्व दोष” होता है।

उदाहरण

दया चाहता में सदा , झोली रखता साथ |
होना भी मत चाहता , आकर यहाँ अनाथ ||

(🖕उपरोक्त दोहे में , कुछ शब्दों की कमी है , जैसे आप “किसकी” दया चाहते है ? अत: सही दोहा होगा – 👇

दया आपकी चाहता , मनसा रखता साथ |
मिले नेह की छाँव जब , होगा कौन अनाथ ||
~~~~~~~~~~~~~~~~~

7 अधिक पदत्व काव्य दोष (शब्द दोष)

जहाँ काव्य में आवश्यकता से अधिक पदों का प्रयोग किया जाता है। वहाँ “अधिक पदत्व काव्य दोष” माना जाता है।

उदाहरण –

सदा भ्रमर ही घूमता , पीने पुष्प पराग |
फँस जाता है लोभ में , बंद कली के भाग ||

इस🖕 उदाहरण में ‘पुष्प’ शब्द अधिक है। क्योकि पराग पुष्प में ही होता है
अतः यहाँ “अधिक पदत्व काव्य दोष” है। सही होगा 👇

सदा भ्रमर ही घूमता , पीने मधुर पराग |
फँस जाता है लोभ में , बंद कली के भाग ||

~~~~~~~~~~~~~~~~~

8- अक्रमत्व काव्य दोष: (शब्द दोष)

जहाँ व्याकरण की दृष्टि से पदों का क्रम सही नहीं हो। वहाँ “अक्रमत्व काव्य दोष” होता है।

उदाहरण

चल पग जब श्री राम ने , किया मार्ग तैयार |
तब “सुभाष” सीता लखन , करें उसे स्वीकार ||

( उपरोक्त 🖕दोहे में “चल पग ” क्रम सही नहीं है
सही क्रम है – पग चल 👇अत: सही होगा

पग चल जब श्री राम ने , किया मार्ग तैयार |
तब “सुभाष” सीता लखन , करें उसे स्वीकार ||

~~~~~~~~~~~~~

9- दुष्क्रमत्व काव्य दोष

जहाँ शास्त्र अथवा लोक मान्यता के अनुसार दो का क्रम सही नहीं हो वहाँ “दुष्क्रमत्व काव्य दोष” होता है।

उदाहरण

गोरी ने गागर भरी , सहज नदी‌ का नीर |
फिर “सुभाष” छोटा कलश , भरा कुवाँ के तीर ||

( 🖕जब नदी के जल से गागर भर ली है , तब कुवाँ के तट से छोटा कलश भरना, “दुष्क्रमत्व काव्य दोष” है )

दूसरा उदाहरण

अगर नहीं सौ नोट हैं , दीजे आप हजार |
हो “सुभाष “यदि लाख भी , वह भी हैं स्वीकार ||

उपरोक्त 🖕दोहे में सभी क्रम सही नहीं है,
यह “दुष्क्रमत्व काव्य दोष” है

सही होगा – 👇

लाख नोट यदि दूर हैं , दीजे आप हजार |
पर हजार भी जब नहीं , तब सौ का स्वीकार ||
~~~~~~~~~~~~~~
10- वाक्य भंजक दोष

दोहा छंद का प्रत्येक चरण एक पूर्ण वाक्य होता है। अतः जहाँ एक वाक्य (चरण) के पद दूसरे वाक्य में प्रविष्ट हों अथवा वाक्यों में परस्पर सामंजस्यता न हो, “वाक्य भंजक दोष ” माना जाता है,

बदल जमाना अब रहा , कुछ भी नहीं विचित्र |
तरह – तरह अब छद्म के, उद्गम दिखें चरित्र ||

उपरोक्त🖕 दोहेे में दूसरा चरण ,किसी भी चरण से तदात्म स्थापित नहीं कर रहा है , अत: वाक्य भंजक दोष आ रहा है , क्योंकि जब जमाना बदल रहा है , व तरह – तरह के छद्म चरित्र दिख रहे है , तब सब विचित्र ही देखने मिल रहा है , जवकि उपरोक्त दोहे का दूसरा चरण कह रहा है कि ” कुछ भी नहीं विचित्र ” अत: दोहे में वाक्य भंजक दोष होगा |
सही होगा👇

बदल जमाना अब रहा ,दिखते दृश्य विचित्र |
तरह – तरह अब छद्म के, उद्गम दिखें चरित्र ||
~~~~~~~
11- वचन दोष –

जब काव्य के चरण , एक वचन – बहुवचन का ध्यान न रख पाएँ तब “वचन दोष” माना जाता है

आया है जब इस जगत ,कर “सुभाष ” शुभ काम |
दाम गुठलियों के मिलें , जब हो मीठा आम ||

🖕उपरोक्त दोहा में “वचन दोष” है , गुठलियाँ बहुवचन है और आम एक वचन है , एक आम से एक ही गुठली मिलेगी
तब सही होगा 👇

चर्चा करता यह जगत , यदि “सुभाष ” शुभ काम |
गुठली रखती मोल है , जब हो मीठा आम ||

~~~~~~~~~~~

12- लिंग शब्द दोष

स्त्रीलिंग और पुलिंग शब्दों का प्रयोग सही न हो ,
तब “लिंग शब्द दोष ” माना जाता है

ऊपर वाला एक है , हम सब उसके अंश |
फिर अवतारी ले जनम, आगे करते वंश ||

ऊपर बाला पुलिंग है व वंश भी पुलिंग है , पर अवतारी इया स्त्रीलिंग प्रत्यय है , तब सही होगा 👇

ऊपर वाला एक है , हम सब उसके अंश |
फिर आए अवतार है , और चले है वंश ||

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
13- पुनरुक्त काव्य दोष- (अर्थ दोष)

जहाँ अर्थ की पुनरुक्ति हो अर्थात एक ही बात को दो अलग-अलग शब्दों के माध्यम से कहा जाए वहाँ ” पुनरुक्ति अर्थ काव्य दोष ” होता है।

मत “सुभाष” अब जाइये, जाना है बेकार |
अंघे -बहरे हैं वहाँ , सूरदास नर नार ||

इस 🖕उदाहरण में जाइये -जाना व
अंघे- बहरे – सूरदास एक ही अर्थ के घोषक है अतः “यहाँ पुनरुक्ति अर्थ काव्य दोष” है।

सही होगा 👇

मत “सुभाष ” अब जाइये, श्रम करना बेकार |
रहते बहरे जब वहाँ , कौन सुनेगा सार | |

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

14- प्रसिद्धि-विरुद्ध काव्य दोष (अर्थ दोष)

काव्य में जहाँ लोक या शास्त्र विरुद्ध वर्णन हो, वहाँ
“प्रसिद्धि-विरुद्ध अर्थ काव्य दोष “होता है।

उदाहरण

मदिराचल सब पूजते , देखें शिवा पिनाक |
नत मस्तक हैं देवता, समझें उसकी धाक ||

इस पंक्ति में पिनाक अर्थात शिव धनुष का संबंध मदिराचल से है। जो लोक और शास्त्र के विरुद्ध है। पिनाक का संबंध शिव व हिमालय पर्वत से है। अतः यहाँ ” प्रसिद्धि-विरुद्ध अर्थ दोष ‘ है , सही होगा 👇

सभी हिमालय‌ पूजते , देखें शिवा पिनाक |
नत मस्तक हैं देवता , समझें उसकी धाक ||
~~~~~~~~~~~
उपरोक्त प्रमुख दोष है , जिनसे काव्य सृजन करते समय सावधानी रखनी चाहिए , और भी दोष है , जिन पर आगामी दिनों में प्रकाश डालेगें, दोहा सृजन में उपरोक्त दोषों से बचाव करना चाहिए |
सादर

सुभाष सिंघई

Language: Hindi
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