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25 Jun 2016 · 1 min read

शारदा वंदन

गीतिका
हे शारदे कपाल झुकाते सदैव हैं।
हम आपको भवानि रिझाते सदैव हैं।
हो बाँटती प्रसाद विमल प्रेम तत्व का।
हम भाव के प्रसून चढाते सदैव हैं।
सद्ज्ञान के कपाट खुले द्वार आपके।
अज्ञान वश सजीव भुलाते सदैव हैं।
दो चित्त से विकार हटा सौम्यता बढा।
छल दंभ द्वेष आदि सताते सदैव हैं।
हो अर्च्य आप अंब चरण पूजते सदा।
माँ पुत्र धर्म मान निभाते सदैव हैं।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

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