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25 Sep 2023 · 1 min read

यादों के जंगल में

यादों का एक जंगल है, जिसमें भटकूं मैं।
कैसे निकालूं मन से तुझे,कहा पटकूं मैं।

चाह कर भी मैं इनसे ,मुक्त नहीं हो पाऊं
बेवफा ऐसा क्यूं,नाम तेरे पर ही अटकूं मैं।

पागल ,दीवाना कहने लगे अब लोग मुझे ,
अब तो ऐसी हालत है,हर आंख में खटकूं मैं।

जिस दिन भी दीदार तेरा,मेरे को हो जाए
बन बावरा नाचूं,गली-गली बस मटकूं मैं।

ऐसे फंस गया हूं ,इन यादों के जंगल में
कोई राह दिखा दे ग़र, फूलों सा चटकूं मैं।

सुरिंदर कौर

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