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8 Sep 2023 · 1 min read

#ग़ज़ल

#ग़ज़ल
■ वक़्त तमाचे मार रहा है।।
【प्रणय प्रभात】

◆ मरे जा रहे थे गौहर पर लालों पर।
लटके हैं तस्वीर बने दीवालों पर।।

◆कल तक जिसको मुट्ठी में बतलाते थे।
वक़्त तमाचे मार रहा है गालों पर।।

◆पीर पराई हाल समझ आ जाएगी।
नमक लगा कर देखो अपने छालों पर।।

◆पानी की जगहा सब कीचड़ ले आए।
दरिया को था बड़ा भरोसा नालों पर।।

◆गली-गली में जोहरी कहाँ भटकते हैं?
एतबार क्यों करते हो नक़्क़ालों पर।।

◆ख़ुदा बचाए एतबार क्या खाक करें।
जंग में जा कर पीठ दिखाने वालों पर।।

◆ हम इंसानी करतूतों के शाहिद हैं।
कोई हैरत नहीं हमें भूचालों पर।।

◆ ये ना होतीं तो वो कब का मिट जाता।
टिका भेड़ियापन भेड़ों की खालों पर।।

◆ वक़्त भरोसा कैसे कर ले क़ौलों पे?
इसने सर लटके देखे हैं भालों पर।।

◆ उनकी सेहत पर पड़ता है फ़र्क़ भला?
तंज़ अंधेरा करता रहे उजालों पर।।

◆ चालाकी का हश्र समझ आ जाएगा।
नज़र गढ़ाए रख मकड़ी के जालों पर।।

◆ कल तक टेबल पे रह के इतराते थे।
महरबान है दीमक आज रिसालों पर।।

●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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