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29 Aug 2023 · 1 min read

नारी का श्रृंगार

नारी का श्रृंगार

एक समय‌‌के बात ये पार्वती ,
शिवशंकर ल कइथे।
आनी बानी के गहना गुरिया
मनखे के नारी पहिरथे।।

मोरो अड़बड़ सउख है स्वामी
गहना गुरिया ले देते।
पहिर लेतेव मै तोर राहत दे
सुघ्घर लहर ले लेतेव।।

शिव शंकर कथे मोर करा
काहिच धन है नईये।
देखत हवस मोर गरीबी व
तन मन कपड़ा नईये।।

लांघन भुखन दिन काटत हव
कांदा कुषा ल खाके।
तोर ददा दाई धनवान स्वयं
कहिबे उसी ल जाके।।

सुक्खा हला दिस हाथ ल भोला
चिमटी भर राख ल धरले।
जतका मिली येमा गहना गुरिया
वो जम्मो ल पहिर ले।।

पार्वती फुसनावत चलदईस
राजा कुबेर के घर में।
एक्कओ भाखा बोलय नहीं
शिवशंकर के डर में।।

लाज के मारे पार्वती हा
कुबेर करा कुछ बोलय नही।
चिमटी भर राख मां का आही
अंदर के आंखी खुलते नही।।

ले दे के कुबेर ल कहिस
ये राख के बदला गहना दे मोला
सोना चांदी हीरा मोती
दे दे तैहा तोला तोला।।

कुबेर सोचिस अपन मन मा
,चिमटी भर राख म का आही।
लहउटआ देहु खाली हाथ
तब भोला नराज हो जाही।।

तौर मां रख दिस राख ला
अब सोना चांदी चढा़वत हे
कुबेर के जम्मो खजाना ला
तौल में मढा़वत है।।

खाली होगे खजाना जम्मो
अब मेरी धोती छुवत है।
चिमटी भर राख अतका गरू
उठाते नहीं उठता है।।

अब पार्वती मन मा सोचिस
गहना गुरिया बेकार है।
नारी बर पति के देय
चिमटी भर राख श्रृंगार से।।

डां विजय कुमार कन्नौजे
अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग

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