Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Jun 2023 · 1 min read

बस यूँ ही...

वो एक शाम
जब आभासी दुनिया
के फ़लक पर,
पहली बार देखा तुम को
अच्छा लगा था
बरसों की खामोशी के बाद
दिल ने चाहा कुछ शब्दों को
बुनना, चुन कर कुछ कहना.
फिर अल्फाज़ लिखे भी
बुने भी,
कैद थी तुम अपने
खुद के बनाए पिंजरे में,
खुद पर अविश्वास के
अपनी जिंदगी में मसरूफ
कुछ बातेँ हुई
कुछ बातेँ बढ़ी,
लगा जिंदगी रफ्तार पकड़ेगी
बेनूर सी रेगिस्तानी
शख्सियत कुछ शक़्ल लेगी
सिलसिला चला
रुका भी कभी
मुस्कुराहट तुम्हारी
खुश करती रही
उदासियों ने मुझे भी
झकझोरा यदा कदा
सब कुछ अच्छा लगने लगा
रुका कारवाँ चलने लगा.
सोचता रहा मैं
क्यों हुआ, कैसे हुआ
चटका था मेरा आईना
फिर ये अक्स क्यूँ बना
ना पाने की चाहत थी
ना खोने का हौसला
बस यूँ कुछ
चलता रहा एक सिलसिला.

हिमांशु Kulshreshtha

Loading...