Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Jun 2023 · 1 min read

*तुम्हारी पारखी नजरें (5 शेर )*

तुम्हारी पारखी नजरें (5 शेर )
————————————–
यह बूढ़ा आदमी जो मुफ्त में किस्से सुनाता है
किसी दिन लोग समझेंगे कि कितना कीमती था यह

“कलावा” शाख पर तुमने जो बूढ़े पेड़ के बाँधा
कहा उसने यही सबसे, यह मेरी एक बेटी थी

बताओ तो जरा यह परवरिश तुमने कहाँ पाई
जड़ों को सींचने की आदतें अब तो नहीं दिखतीं

चढ़ा‌कर जल गए जब तुम, तो तुलसी बस यही बोली
हुआ था साथ दो दिन का, निभाया आज तक उसने

तुम्हारी पारखी नजरें हैं, सच तारीफ के काबिल
सने थे धूल में हीरे जो, वो शोरूम में हैं अब
—————————————-
रचयिता रवि प्रकाश बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451

Loading...