तपोवन है जीवन
तपोवन है जीवन ये मरम समझ में आया है
शीत ,ग्रीष्म ,वर्षा ,शरद ऋतु ने ये समझाया है
सब दिन एक से नहीं
परिवर्तन जीवन की परिभाषा
है जीवन के इस निलय में
सुख -दुःख का आना जाना
नित्य नूतन दिवस में
असंख्य सम्भावनाए जन्म लेती
संध्या तक आते आते
असंख्य सम्भावनाए मृत होती
फिर भी अक्षी ने स्वप्न नहीं छोड़े
दिवस बीतने पर भी दिवस नहीं बीते
प्रयास सदा करने को कहती
प्रकृति ना जाने कितने मार्ग देती
चलने को सदा कहती
कुछ उदाहरण सदा ही देती
मार्ग में बाधा आ जाए तो
तुम बन नीर सदा बहना
अपने लक्ष्य पर पर्वत की तरह
अडिग रहना
विचारों को तुम सदा
एक खुला अम्बर देना
भाव सदा ही आते- जाते
जैसे पवन का हो झोंका
पर तुम उन भावों में मत
कहीं स्वयं को खो देना
जीवन है जीवन की ही तरह
सदा इसे तुम जीना
आलिंगन करने आएगी एक
दिन तुमको
जीवन की अंतिम कटुता
भाव नहीं ये भावनाएं हैं
जीवन सदा इसी क्रम में बढ़ता
जन्म मरण के चक्र में
बस ये जीवन है चलता
तुम पार्थ हो नारायण के
इतनी बात समझ लो तुम
इस जीवन का मर्म समझ लो तुम
स्वयं की यात्रा
स्वयं से ही करनी है
ना कोई सगा ना कोई सम्बंधी
नर का रुप धर आए हैं नारायण तक है जाना
स्वयं के लिए स्वयं को ही बस
चलते ओर चलते जाना है
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)