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12 Jun 2023 · 1 min read

मन की दूरी

मन से है क्यूँ मन की दूरी,
संग हूँ पर है क्या मज़बूरी।
रह गए अनकहे कितने प्रश्न,
होगी कब मेरी साध ये पूरी।
नित भावों का घिर-घिर जाना,
उमड़-घुमड़ के सीपज बरसाना।
है लागी कैसी चोट न जाने,
बिन बरखा सावन हर्षाना।।
है कसक दबी जो मन के आँगन,
नित अकुलाहट,तड़पत हर पल।
अनकहे शब्द की गठरी बन,
उर-पन्नों पर बहे नयन जल।।
कुछ मुझमें कुछ तुम में बाकी,
मौन रहेगा कब तक संवाद।
कब फूलेगी बगिया फिर से,
भृमर करेंगे कब मधुवन आबाद।।

-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच,उ०प्र० )

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