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12 Jun 2023 · 1 min read

दबाव नही रक्खा

कब जले कब बुझे कुछ याद नही रक्खा
हमनें चरागों पर कभी दबाव नहीं रक्खा

अपनी हैसियत में जिंदगी गुजर बसर की
अनमोल चीजों पर अपना हाथ नहीं रक्खा

वो गुजरा जरूर बिल्कुल करीब से मेरे
मगर उसने भी कब्र पे गुलाब नहीं रक्खा

बेतरतीब खर्च किया दिल के खजाने को
कहाँ कितना खर्च किया हिसाब नहीं रक्खा

और यूहीं मोहब्बत परवाज कर गईं ‘आलम’
मैंने कोई जबाब उसने कोई सवाल नहीं रक्खा
मारूफ आलम

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