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31 May 2023 · 1 min read

अधूरी हसरतें

खलिश मन की ,जो हसरतें अधूरी थी।
ऐसी बातें जो तुमसे करना ज़रूरी थी।

वास्ता दिया खुदा का,मगर वो न बोले
समझते कैसे,आखिर क्या मजबूरी थी।

उसने देखा न मुड़ कर ,कभी मेरी जानिब,
दो कदम न चल पाये,ऐसी भी क्या दूरी थी।

गैरों की टांगें काट,कद उसने ऊंचा किया
उसपे खूबी ,लहज़े में उसके जी हजूरी थी।

तलाश करता रहा वो , इश्क की महक की
सीने में उसके‌‌ ही,दबी वो कस्तूरी थी।

सुरिंदर कौर

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