Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
31 May 2023 · 1 min read

गीतिका

बरसती नित नई हर छंद की रसधार को देखा।
नहीं जग ने हमारी शब्द से मनुहार को देखा।।1

बनाया प्रेम का रिश्ता खुशी बाँटी सदा जग को,
चला हूँ साथ ले सबको नहीं व्यवहार को देखा।।2

दुकानें खोलकर बैठे सभी अब हर तरफ ढोंगी,
पनपते धर्म के कलुषित यहाँ व्यापार को देखा।।3

सबल सक्षम दुलारा है बधाई दे सभी उसको,
कभी मुड़कर नहीं जग ने किसी लाचार को देखा।।

लगा विद्वान के पीछे जिसे प्रिय ज्ञान की बातें,
फँसा जो मोह माया में सदा घर द्वार को देखा।।5

नहीं खुशियाँ पुरानी ढूँढते हैं लोग अक्सर अब,
मनाते नाम को हैं सब यहाँ त्योहार को देखा ।।6

बताना क्या दिखाना क्या लगी तस्वीर सीने में,
नहीं जिसने वतन के प्रति हमारे प्यार को देखा।।7
डाॅ. बिपिन पाण्डेय

Loading...