सीता से क्या भूल हुई
अपने आराध्य श्री राम जी से क्षमायाचना सहित पूछ रही हूँ।
चरण-धूल से गौतम नारी शापमुक्त कर दी रघुनंदन,
सीता की वो भूल बता दो, इन चरणों की सेवा करके,
इसी धूल को सोलहवां सिंगार बना के,
आजीवन अपराध मुक्त ना हो पाई मिथिलेश कुमारी।
राजमहल को त्याग, तुम्हारे संग परछांई सी चलती,
वन-वन भटकी जनक दुलारी,
कहाँ चूक हुई, क्या भूल गयी, क्यों हुई व्यथित विदेह नंदिनी।
सघन वनों में चलते चलते, पांवों में छाले पड़ जाते,
जब जब कांटे थे चुभ जाते, तुम्हीं निकालते,
युग-युग से है समय पूछता क्या भूल हुई,
शब्द-शूल क्यों पड़े झेलने उसे हृदय में?
प्रश्नों पर विराम लगा दो, सीता की वो भूल बता दो।
ना राजा ने न्याय किया और तुमने भी परित्याग किया,
आंचल में दो रत्न लिए ,वन-वन भटकी जनक दुलारी,
कितनी अग्निपरीक्षाओं में ,निखर -निखर क्यों मन में हारी?
आदिकाल से प्रश्न हवा संग भटक रहा है,
भटकन को विश्रांति दिला दो,सीता की वो भूल बता दो।