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25 May 2023 · 1 min read

भरमाभुत

भरमाभुत

जन जन में ब्याप्त है
भरमाभुत सवार
मंशा भ्रम पाप का
को है मेंटनहार।

सुर्य ताप से तप रहा,
जस अग्नि से आग
भरमभुत म जग जलें,
कौन कोयली कौन काग।।

कवि विजय की सोच है
पल पल बाढे़ यार
जन जनार्दन कर चलों
विश्वास करेंगे पार।।

पति पत्नी विश्वास करें
मिलें जनम‌ एक बार
विश्वास जगत में सार है
वहीं खेवन हार।।

स्वर्ग सा घर सुंदर है
हो जायेंगा राख
भरमभुत भरमार से
घट जायेगा साख।।

जो मिला है संतोष कर
न करें पराये आस
मंशा भ्रम भरमार रोग
कर देंगे घर नाश।।

पति-पत्नी का प्रेम अनोखा
कहें विजय का लेख
गृहस्थ आश्रम स्वर्ग सम
ब्रम्ह आनन्द को देख।।

विजय कहें संदेश अब
न करो तकरार
सत्संग बड़ा बैद्य है
वहीं मेटन हार।।

मंशा भ्रम है मानस रोग
कर जायेंगे बर्बाद
विजय वचन को मानिये
करके मन विश्वास।।

विश्वास बड़ा है औषधि
कट जायेगा पाप
नारी है आदिशक्ति
महादेव है‌ आप।।

कवि विजय की सोच है
सुखी रहें संसार
हाथ जोड़ नमन करूं
सबको सीता राम।।

गांव विजय कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर

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