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21 Jun 2016 · 1 min read

आँखे

आँखों का पथराना
देखा है या देखी है
आँखों की चंचलता
सूनापन गहरा था या
सम्मोहन का जादू
नयनो की भाषा
मौन होने पर भी
हृदय को करती मुखर
बोल देती
अनकहा भी बहुत कुछ
मैं मेरे नयन पलको के नीचे
तुम्हे निहारते घन्टों
और तुम समझते
आँखे बंद हो भूल गई तुम्हे
मगर …
क्या है इतना आसान
आँखों मे समाई सूरत को
आँखों से ओझल कर देना
मेरी आँखो के सागर मे
तुम मन पर प्रतिबिंबित होता चित्र हो
जिसे संजोए हूँ मै
पलको की परत के नीचे
सदियो से

शिखा श्याम राणा
पंचकूला हरियाणा ।

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