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18 May 2023 · 1 min read

दहेज एक समस्या– गीत

कि सुनकर धड़कन रुक जाती है,
धरती भी हिलने लगती।
चंद रुपए गाड़ी की खातिर,
जब पगड़ी धूमिल होने लगती।
गिरवी था घर बार सभी,अब इज्जत भी गिरवी रख दी,
बस दहेज की खातिर उसने सांसे भी गिरवी रख दीं।।

देख पसीना आ जाता है, पत्थर भी रोने लगते।
फूट-फूटकर बिटिया रोती, जब रिश्ते तोड़े जाते।
है कैसा इंसाफ यही, जो देती है वो सहती है।
बस दहेज की खातिर बिटिया रोज जलाई जाती है।
बस दहेज की खातिर बिटिया रोज जलाई जाती है।

कभी कोख में मारी जाती, कभी जलायी जाती है।
कभी भरे बाजार में उसकी, इज्जत लूटी जाती है।
है कैसा ये देश जहां, बेटी बेटों से डरती है।
बस दहेज की खातिर, हर डोली सूनी रह जाती है।
बस दहेज की खातिर हर डोली सूनी रह जाती है।।

कोई बड़े भाषण देता है, कोई सोख जताता है।
लेकिन अगली दुर्घटना तक, सब ठंडा हो जाता है।
सिर्फ वोट बैंक की खातिर गुंडा संसद भेजा जाता।
लोकतंत्र बस अर्थी है कोई भी फूल चढ़ा जाता।
लोकतंत्र बस अर्थी है, कोई भी फूल चढ़ा जाता।।

अभिषेक सोनी
(एम०एससी०, बी०एड०)
ललितपर, उत्तर–प्रदेश

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 254 Views

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