Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
17 May 2023 · 1 min read

भगवावस्त्र

हमारे संस्कृति का स्वाभिमान है भगवा चोला,
ऋषि मुनियों की आन-वान और शान है भगवा,
साधुओं का पुरुषार्थ और
साधवियों का ईमान है भगवा चोला,
…………
राम-नाम का प्रमाण है भगवा रंग,
ईश्वर का वास है भगवा चोला,
कभी पहना था इसे मीरा, सूर और तुलसी ने,
बढ़ाई थी भारतीय संस्कृति की गरिमा।
…………….
आज भगवे चोले में मिलेंगे शैतान भी,
जो बदनाम कर रहे है भारतीय संस्कृति को,
अपने प्रयोजन के लिए कर रहे हैं समाज का प्रयोग।
साधु और संन्यासी का राजनीति से क्या काम,
दूर कर दिया इन्होंने स्वयं को धर्म कर्म के मार्ग से।
उदर पूर्ति के लिए रच रहे हैं नित नए-नए स्वांग।
…………..
हे संन्यासी रूपी मानव,
अब भी सुधार कर ले,
राम नाम का जप कर ले,
और अपने को लगा ले,
सत्कर्मों में, नहीं तो पीछे पछताएगा।
…………….
राम-नाम की अमोघ फलदायिनी औषधि चख ले,
और हिंदू धर्म, भारतीय संस्कृति को समाप्त न कर।
हिंदू धर्म को साख तुम्ह ही से है,
भगवावस्त्र धारण किया है तो उसका सम्मान भी कर।

घोषणा: उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। यह रचना पहले फेसबुक ग्रुप या व्हाट्स ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।

डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश

Loading...