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15 May 2023 · 1 min read

ज़िंदगी का नशा

ये ज़िंदगी जीना ही नशा है
जो सबको करना चाहिए
आए हैं हम इस दुनिया में तो
इसको हर पल जीना चाहिए

ज़िंदगी का नशा लगा हो जिसको
उसको कोई और नशा नहीं चाहिए
आनंद लेता है जीवन के हर पल का वो
तुमको भी आज़मा कर देखना चाहिए

क्या रखा है शराब के नशे में
आदमी को हैवान बना देता है
भुला जाता है सबकुछ जब
फिर वो कैसे मज़ा देता है

नशा तो है प्रकृति के कण कण में
बस उसको लेना आना चाहिए
देखा है क्या उगते सूरज को कभी
हर रोज़ ऐसे जीना चाहिए

कल कल करते झरने,
नई दुल्हन सी नदी की छनछनाहट
वो पहाड़ों के सुंदर आकार
देखोगे तो सारे नशे भूल जाने चाहिए

ताजगी सुबह की मिटा देती पलभर में
जो भी नशा तू करता है
हो जाए नशा सुबह की ताजगी लेने का
वो ज़िंदगी को ताउम्र मज़ा देता रहता है

नशा तो है इन पंछियों की आवाज़ में
जो मनमोहक संगीत सा सुकून देता है
थोड़ा सा चलकर देख ले जंगल के बीच में
आभास स्वर्ग का वो देता है

नशा चुराएगा अगर कभी गोरी की आँखों से
होश नहीं आएगा ताउम्र याद आती रहेगी उसकी
तू बस इतना कर, करता है प्यार जिससे
झांककर तो देख एक बार आँखों में उसकी

है उससे बड़ा फिर एक ही नशा
तू एकबार जाकर देख ले प्रभु के दरबार भी
समेट ले जो मिलती है मन की शांति वहां
कोई गिला न रह जाएगा तुझे ज़िंदगी के बाद भी।

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