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15 May 2023 · 1 min read

अनादि

क्षण क्षण क्षरण हो रहे क्षण में
क्षणिक क्षण भर क्षितिज को देखो
अनगिनत अनादि अनंत कल्पना खोलो
कल्प कल्पित कल्पना के कलरव को जानो
जाने से पहले स्वयं को पहचानो
ईश पर रख विश्वास की आश
अन्दर की यात्रा तो करो
स्वयं के लिए स्वयं को जानो
मिट्टी के तन में सांसो को
जोड़ा जिसने उसको पहचानो
संक्षिप्त सही पर सार गर्भित हो
मन शान्त और विचार निर्मल हो
मिट्टी का तन कांठ पर जब जाएगा
देखना मन नहीं पचताएगा
स्वप्न जो क्षणिक अक्षि ने देखा
कुछ तो प्रयास कर लिया जाए
प्राण का अर्पण कर समर्पण
ध्यानमग्न हो जाने दो
सारी चिंता को चिन्तन में बदल कर
तो देखो नयन से अपने हृदय द्वार देखो
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)

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