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7 May 2023 · 1 min read

विश्वास का धागा

उधड़ रही है ये तुरपाई
संबंधों में है दूरी आई
विश्वास का धागा पड़ गया ढीला
जबसे है ये शक की सुई आई

जो कल तक लगता था अपना
उसकी एक पल अब याद न आई
पाकर जिसको कभी धन्य हुआ था
वो प्रीत भी अब हो गई पराई

हो गया इतना सबकुछ यारों
अब भी न हमको क्यों अक्ल न आई
जहां भी देखो आपस में लड़ते
मियां बीबी भाई भाई

कभी जो सोचें मिलकर हम सब
क्यों दिखती हमको सिर्फ बुराई
तुम भी वही हो हम भी वही हैं
फिर बीच में ये खाई कहां से आई

होता नहीं है विश्वास जहां पर
आ जाते हैं कितने स्वार्थ भाई
बचना उनसे फिर आसान नहीं
बन जाओगे उनके ग्रास भाई

न टूटने पाए ये धागा कभी भी
हो जीवन में कितनी भी उदासी छाई
मिलकर सबकुछ झेल जाओगे
विश्वास ने है सबको धूल चटाई

ये विश्वास तो है धुरी प्रेम की
जिससे जीवन में है बहार आई
होने न देना कम इसको तुम
बुजुर्गों ने है ये राह दिखाई।

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