प्यार पर ग़ज़ल गझलकार : अक्षरजित
प्यार पर ग़ज़ल
हज़ार चेहरों में इक तुम ही दिल को लुभा गए,
वो क्या अदा थी कि हम अपना होश गँवा गए।
तुम्हारी नज़रों में देखी है मैंने वो गहराई,
जिसमें डूब कर हम ख़ुद को भूलते चले गए।
हर एक साँस में अब नाम तुम्हारा रहता है,
ये कैसा रिश्ता है जो रूह तक समा गए।
कभी ख़ुशी बन के आए, कभी दर्द बन के,
इश्क़ में तेरे हम हर इम्तेहान उठा गए।
ये ज़िंदगी अगर अब तेरे बिना गुज़रे,
तो क्या फ़ायदा, कि हम जीते जी मर गए।