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29 Jun 2016 · 1 min read

उपेक्षित

मुक्तक
मरुस्थल स्वार्थ का फैला नहीं कोई ठिकाना है।
उपेक्षित को सदा उम्मीद की कुटिया बनाना है।
जगत दाबे करे हमदर्द बनने के हजारों पर।
उन्हें तो भाग्य के आगे हमेशा सिर झुकाना है।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

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