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14 Apr 2023 · 1 min read

जिमी कंद बन जाऊं मैं,,

जिमी कंद बन जाऊं मैं,,

जिमी कंद की ले आशा,जिमी कंद बन जाऊं मैं।
न कड़ुवा,न मीठा ,न अपना स्वाद बताऊं मैं।।
चांद सूरज को करूं नमन,धरती में मिट जाऊं मैं।
पर उपकार करुं सुन्दर, औषधि बनकर आऊं मैं।।

खट्टा मीठा,जो भी मिले ,अपना दोस्त बनाऊं मैं।
जो समझें स्वभाव मेरा,उनको स्वाद चखाऊं मैं।।
पर उपकार करूं सुन्दर, औषधि बनकर आऊं मै।
जिमी कंद की ले आशा जिमीकन्द बन
जाऊं मैं।।

बिन फल फुल का निरस पौधा,धरती का गुण गाऊं मैं।
मान अपमान का ,न कर चिंता, परहीत में लग जाऊं मैं।।
मातृभूमि का नमनकर, राष्ट्र हित में लग जाऊं मैं।
जिमीकंद का ले आशा जिमीकंद बन जाऊं मैं।।

सुख शांति समृद्धि की बरसा,मेरी रहम पर आते हैं।
लक्ष्मीपुजन,दिन दिवाली,बड़े मजे से खाते हैं।।
अनेक बिमारी की मैं दवा,कितना बात बताऊं मैं।
जिमीकंद की ले आशा ,जिमी कंद बन जाऊं मैं।।

डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी वि खं आरंग जिला रायपुर छत्तीसगढ़

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