Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
27 Mar 2023 · 1 min read

"कैसे सबको खाऊँ"

14/03/2023
कोई दादा बन बैठा है कोई काका ताऊ।
कोई राव वजीर बुद्ध है कोई अनुपम भाऊ।
मैं हूँ दास कबीरा कोई सबको पाठ पढ़ाऊँ।
खुली आँख से देखो सपना कैसे सबको खाऊँ।

केवल खाया माल मुफ़्त का कैसे आँख मिलाऊँ।
नहीं झोंपडी मेरे सिर पर सबको महल दिलाऊँ।
कैसे – कैसे उल्लू बैठे दिन में आँखें खोले।
तपे गगन में सूरज चन्दा मामा उसको बोले।

अंधों में काना राजा बन न्याय तराजू तोलें।
मार मुझे आ बैल सभी से आते जाते बोलें।
पाँव फटे में आकर डालें ज्ञानी खुद को मानें।
हाथ तंग बुद्धि से है पर खुद को नेता जानें।

पढ़ ले चाहे वेद काक क्या हंस कहेगा कोई।
छोड़ मिठाई कचरे में फिर अपनी चोंच डुबोई।
चाहे जितना दूध पिलाओ नाग जहर क्या छोड़े?
‘रुद्र’ पलट कर वापस तुम पर दंश मारने दौड़े।
द्वारा :- 🖋️🖋️
लक्ष्मीकान्त शर्मा ‘रुद्र

Loading...