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6 Feb 2023 · 1 min read

नौनी लगै घमौरी रे ! (बुंदेली गीत)

जूड़ी-जूड़ी
बैहर चल रई
नौनी लगै घमौरी रे !

उठत भुंसराँ
कुहला पर रव,
सूरज दुफरै लौ जूड़े ।
धौर कें बाहर
धौर कें भीतर
हो रय बारे औ’ बूड़े ।

खाँसी चल रई
छींकें आ रईं
बँद-बँद जात दतौरी रे !

पतरी बुसकट
पैर भगुनियाँ
टिटकारत जावै ढुरवा ।
जाड़े में पथरा-
से हो गय
बिना पनैंओं के फरवा ।

गेरत जा रव
टलवा,नटवा
गैंएँ कल्लू, धौरी रे !

जरसी पैरें
छैल-छबीले
मोंड़ीं-मौड़ा बनयानें ।
काँछ लगी
धुतिया में बऊएँ
झारें घर,अँगना,सारें ।

मजबूरी में
कर रईं कर्री
गोरी काया कौंरी रे !

जूड़ी-जूड़ी
बैहर चल रई
नौनी लगै घमौरी रे !
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी

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