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13 Jan 2023 · 1 min read

वो हूर नजर आती

*** वो हार नजर आती ***
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बे-मौसम बरसात बरसती है,
दो आँखें हर बार तरसती है।

भीनी-भीनी आन रही खुश्बू,
फूलों जैसी गंध महकती है।

नजरों से हो दूर खड़ी होकर,
चौडे सीने आग दहकती है।

खाकर ठोकर पार नहीं नैया,
चुनरी रंगीं लाल सरकती है।

मनसीरत वो हूर नजर आती,
यौवन से भरपूर मचलती हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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